राजधानी में संजौली के बाद अब कसुम्पटी में कथित मस्जिद पर विवाद गहरा गया है। स्थानीय लोगों ने जिला प्रशासन से विवादित परिसर को तुरंत सील करने की मांग की है। साथ ही हर शुक्रवार को बाहर से आ रहे लोगों की जांच की मांग उठाई है। ऐसा न होने पर क्षेत्र में माहौल बिगड़ने का भी अंदेशा जताया है।
स्थानीय पार्षद रचना शर्मा और पूर्व उप महापौर राकेश शर्मा की अगुवाई में कसुम्पटी क्षेत्र का प्रतिनिधिमंडल मंगलवार को उपायुक्त अनुपम कश्यप से मिला। लोगों ने ज्ञापन देते हुए कहा कि कसुम्पटी में कभी भी मस्जिद नहीं थी। जिस जगह वक्फ बोर्ड मस्जिद होने का दावा कर रहा है, वह जमीन केंद्र सरकार की है। इसका पुख्ता दस्तावेज भी उपलब्ध है। आरोप लगाया कि यहां अवैध निर्माण कर मस्जिद का निर्माण किया जा रहा है। पार्षद रचना ने कहा कि इस अवैध निर्माण को गिराने के नगर निगम कोर्ट से आदेश भी जारी हो चुके हैं।
इसके बावजूद मौके पर बाहरी क्षेत्र से समुदाय विशेष के लोग पहुंच रहे हैं। पहले 10 से 20 लोग यहां आते थे। अब हर शुक्रवार 200 से ज्यादा लोग आ रहे हैं। ये सभी लोग इस क्षेत्र के रहने वाले नहीं हैं। स्थानीय लोग इनसे परेशान हैं। कहा कि पुलिस को इनकी वेरिफिकेशन करनी चाहिए। ये कहां से यहां आ रहे हैं, इसकी जांच होनी चाहिए। उपायुक्त ने कहा कि मामला अदालत में विचाराधीन है। अभी फैसले का इंतजार करना होगा।
रिहायशी मकान को बता रहे मस्जिद: राकेश
उपायुक्त के बाद लोग आयुक्त भूपेंद्र अत्री से भी मिले। पूर्व उप महापौर राकेश शर्मा ने कहा कि कसुम्पटी, विकासनगर, पंथाघाटी से लेकर आसपास के पूरे इलाके में मुस्लिम समुदाय के 40 परिवार तक नहीं हैं। जब इस समुदाय की यहां आबादी ही नहीं है तो फिर मस्जिद कहां से बन गई।
कहा कि यह रिहायशी मकान था जिसे अब मस्जिद में बदला जा रहा है। जिला प्रशासन और नगर निगम से मांग की गई है कि विवादित परिसर को तुरंत सील किया जाए। इस मामले पर जब तक सेशन कोर्ट से कोई फैसला नहीं आ जाता, तब तक यहां आने वाले लोगों पर पाबंदी लगाई जाए। इनकी जांच भी की जाए। साथ ही इस मामले में इस क्षेत्र के लोगों को भी पार्टी बनाया जाए।
वक्फ बोर्ड के अनुसार, यह है कसुम्पटी मस्जिद का इतिहास
वक्फ बोर्ड का दावा है कि कसुम्पटी मस्जिद आजादी से पहले की बनी है। वक्फ बोर्ड के स्टेट ऑफिसर कुतुबदीन के अनुसार 1937-38 के राजस्व रिकॉर्ड के मुताबिक खसरा नंबर 204 से 210 तक की यह जमीन मोहम्मद अल्दुल्ला पुत्र बरकतुला के नाम थी। इसका रकबा करीब 11 बीघा पांच बिस्वा था। 1941-42 में अब्दुल्ला ने खसरा नंबर 206 की जमीन मस्जिद के नाम दान कर दी। ऐसे में 1947 से पहले यहां मस्जिद बन चुकी थी।
बोर्ड के अनुसार 1951-52 में अल्दुल्ला के यहां से चले जाने के बाद यह रिहेबलिटेशन के तहत जमीन केंद्र सरकार के नाम हो गई, लेकिन खसरा नंबर 206 में गैर मुमकिन मस्जिद ही दर्ज रहा। 1966 में वक्फ संपत्तियों के सर्वे के लिए पंजाब वक्फ बोर्ड ने पीसीएस गुरुदेव बराड़ को हिमाचल का जिम्मा सौंपा। उन्होंने 1969 में केंद्र को रिपोर्ट दी और 15 अगस्त 1970 को राजपत्र में इसका प्रकाशन हुआ। इसमें भी इस खसरा नंबर पर मस्जिद दर्ज है। 2003 में हिमाचल वक्फ बोर्ड बनने के बाद यह संपत्ति बोर्ड के पास आई। खसरा नंबर 206 बाद में 208 हुआ और आजकल यह खसरा नंबर 1101 बन गया है।