सुप्रीम कोर्ट का सख्त रुख: ‘आईपीएस पत्नी पति और ससुराल से मांगे सार्वजनिक माफी’

सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को अपने विशेष संवैधानिक अधिकारों का प्रयोग करते हुए भारतीय पुलिस सेवा (IPS) की एक महिला अधिकारी और उनके अलग रह रहे पति को तलाक की अनुमति दी है। अदालत ने इस दंपती के बीच चल रहे सभी दीवानी और आपराधिक मामलों को समाप्त कर दिया।

मुख्य न्यायाधीश बी.आर. गवई और न्यायमूर्ति ऑगस्टीन जॉर्ज मसीह की पीठ ने सुनवाई के दौरान महिला अधिकारी और उनके माता-पिता को, पति और उसके परिवार से बिना शर्त माफी मांगने का निर्देश दिया। यह माफी एक प्रतिष्ठित हिंदी और अंग्रेजी अखबार के राष्ट्रीय संस्करण में प्रकाशित की जाएगी।

अनुच्छेद 142 के तहत मिला ‘पूर्ण न्याय’

अदालत ने भारतीय संविधान के अनुच्छेद 142 के तहत मिले विशेष अधिकारों का इस्तेमाल करते हुए 2015 में हुई शादी और 2018 में आई दरार के बाद शुरू हुए कानूनी संघर्ष को समाप्त किया। अनुच्छेद 142 सुप्रीम कोर्ट को लंबित मामलों में ‘पूर्ण न्याय’ सुनिश्चित करने हेतु आवश्यक आदेश देने की शक्ति प्रदान करता है।

बेटी की अभिरक्षा मां को

बेटी की कस्टडी को लेकर अदालत ने आदेश दिया कि वह मां के पास रहेगी। पिता और उनके परिजनों को पहले तीन महीनों तक निगरानी में बच्ची से मिलने की अनुमति होगी। इसके बाद, हर महीने के पहले रविवार को सुबह 9 बजे से शाम 5 बजे तक स्कूल परिसर या नियमों के अनुरूप निर्धारित स्थान पर मुलाकात हो सकेगी।

गुजारा भत्ते की मांग महिला ने छोड़ी

महिला अधिकारी ने खुद आगे आकर पति से किसी प्रकार का गुजारा भत्ता नहीं लेने का फैसला किया। इसके आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट द्वारा दिया गया 1.5 लाख रुपये प्रतिमाह गुजारा भत्ते का आदेश भी रद्द कर दिया।

सभी मुकदमे रद्द

दोनों पक्षों की सहमति के आधार पर, अदालत ने भारत की किसी भी अदालत या फोरम में एक-दूसरे के खिलाफ दायर सभी मुकदमों—चाहे वे आपराधिक हों या दीवानी—को समाप्त करने का आदेश पारित किया।

पद का दुरुपयोग न करने की हिदायत

सुप्रीम कोर्ट ने महिला अधिकारी को यह भी निर्देश दिया कि वह आईपीएस पद का इस्तेमाल पूर्व पति के खिलाफ किसी भी प्रकार के निजी हित में नहीं करें।

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